गरीबी का मौसम- कु. अदीक्षा देवांगन "अदी"
मात्रा=31/8+8+8+7
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शीर्षक-"गरीबी का मौसम"
कु,अदीक्षा देवांगन "अदी"
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(1)
गरमी में धूप भारी,सरदी में जाड़ा लगे,
बरसाती नदिया में,घर डूबने लगे!
गरीबी में आँटा गिला,जीवन में काँटा मिला,
गरीबी की ज़िंदगी से,सब उबने लगे!!
पहाड़ से पीड़ा भारी,जैसी है दुनिया दारी,
फूलों के बगीचे भी,काँटे चूभने लगे!
बीच मजधार जैसे,डोलती नइया सारी,
बिना पतवार डोंगा,नीचे डूबने लगे!!
*कानून*
(2)
लिखा है बाबा साहेब,ना जाने कानून कैसा,
वकील अदालतों में,सांची बेचने लगे!
पैसा है तो जीतेगा तू,चाहे कर ले गुनाहें,
बिना पैसा बेगुनाह,फांसी चढ़ने लगे!!
गवाह भी बिकते है,बिकता है बाबू यहाँ,
समय भी बिकता है,तारीख देने लगे!
तारीख पर तारीख,तारीख मलते यहाँ,
न्याय मिले या ना मिले,साँस बुझने लगे।
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कु,अदीक्षा देवांगन"अदी"
बलरामपुर(छत्तीसगढ़)
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संकलन- विजय सिंह "रवानी"
7587241771, 9098208751
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