लिखू सरहद के पहरेदार पर


 लिखू सरहद के पहरेदार पर 

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न बिन्दी पर लिखू, न लिखू पायल की झंकार पर! 

दे आशीष शारदे, कि लिखू सरहद के पहरेदार पर!!


माला में पिरोदू सैन्य अभिमान को!

सत सत नमन भारत के जवान को! 

टूटी-फूटी  शब्द, सही हो मनो भाव, 

लिखू उत्कृष्ट प्रकाश्य जस गान को!

न चुनरी पर लिखू, और न लिखू समीज सलवार पर! 

दे आशीष शारदे, कि लिखू सरहद के पहरेदार पर !!


करु मैं बखान उनके तपो बल का!

जो करते सामना, हर एक पल का!

हम गर बैठे हैं सुरक्षित अपने घरो में, 

उनके दम से आश्रित हमारे कल का! 

न दिल पर लिखू, और न लिखू किसी दिलदार पर! 

दे आशीष शारदे, कि लिखू सरहद के पहरेदार पर!!


यही़ हैं कर्ता और यहीं हैं दायक! 

हैं भारत के यहीं असली नायक! 

करे सम्मान  हम  इनका मन से, 

यहीं हैं वंदित यहीं पूजा लायक!

न प्रेयसी पर लिखू, न मैं लिखू प्रियतमा श्रृंगार पर! 

दे आशीष शारदे, कि लिखू सरहद के पहरेदार पर!!


जो  गरजते  हिमखंड की घाटी से!

जिन्हें हो नाज देश की परिपाटी से! 

मैं भी रखू श्रद्धा उनके सम्मान का, 

जिनको हैं श्रद्धा भारत की माटी से!

न कंगन पर लिखू, न लिखू किसी नौ-लखा हार पर! 

दे आशीष शारदे, कि लिखू सरहद के पहरेदार पर!!


महिमा मंडित करु ऐसा कर दे शारदे

मैं नित्य गान करु मुझे ये वर दे शारदे!

सैनिक शौर्य "विजय" बखान कर दू, 

मुझे भी अपना सशक्त स्वर दे शारदे!

न बाग पर लिखू, न लिखू बागो के बहार पर! 

दे आशीष शारदे, कि लिखू सरहद के पहरेदार पर!!

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🙏

विजय सिंह "रवानी"

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