ऊषा और निशा


 *कविता*

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ऊषा और निशा

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रिस्ते  क्या ऊषा-निशा के, 

पूरब और पच्छिम दिशा के!


ईश्वर ने जो रची कहानी, 

पात्र हम उसी किस्सा के! 


समझ लो भीतर के पीर,

हंसते है दरद छिपा के! 


आना है तो आ भी जाओ, 

रखते हैं पलकें बिछा के! 


सब आये हैं इस धरा पर, 

अपनी किस्मत लिखा के!


कभी साथ जो थे हमराही,

चले गये रास्ता दिखा के! 


वो असभ्य क्यों हो गये, 

हमें सुसंस्कार सीखा के!


बाबा अब विदा हो गये, 

कोने में लाठी टिका के! 


प्रकृति की गीत मे देखो, 

सुर में तुम सुर मिला के!


अब बस भी कर"अदीक्षा"

रख दी बुनियाद हिला के! 


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कु, अदीक्षा देवांगन, 

बलरामपुर (छत्तीसगढ़) 

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