आ भी जा


 *ग़ज़ल

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आ भी जा

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क़ज़ा इंतज़ार है तेरा,

तुझे कसम है आ भी जा, 

राहे-ह़यात पे मेरा,

बिछा क़फ़न है आ भी जा! 


हर्फ़े-शिकायत भी नहीं,

किसी से है अब क्या कहना, 

हर तरफ नूर है मगर, 

अंधेरा चमन है आ भी जा! 


मर्ग़े-शौक का आलम,

यूँ भी देखा है हमने, 

ऐसे ग़म हज़ार दिल में ही,

दफ़न है आ भी जा! 


सहर होने से पहले, 

जाने क्यों रात होती है, 

मीरा को श्याम से लागी,

जैसे लगन है आ भी जा! 


राहे-ह़यात पे ही है,

 ताइरे-नफ़स को उड़ना, 

धक-धक जो करता है, 

दिल की धड़कन है आ भी जा! 


अब न कर कोई शिकवा,

कोई गिला न कर हम से, 

बात मेरी मान ले जानम, 

सुहाना मौसम है आ भी जा! 


"अदीक्षा"दिले-बक़फ़, 

मुसलसल चलना ही होगा, 

क़ज़ा भी साथ चलता है, 

यही हमदम है आ भी जा! 



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कुमारी अदीक्षा देवांगन

बलरामपुर (छत्तीसगढ़) 

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*शब्दार्थ*

क़ज़ा=मौत

राहे-हय़ात=जीवन मार्ग

क़फ़न=शव ढंकने का कपड़ा

हर्फ़े-शिकायत =आपत्ति के शब्द

मर्ग़े-शौक =विरह काल

सहर=सवेरा

ताईरे-नफ़स=सांसरुपी पक्षी 

दिले-बक़फ़ =हृदय हाथ में  लेकर

मुसलसल=निरंतर


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