तीन वैचारिक मुद्दे
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ये कैसी वैचारिक मुद्दे है, क्यों मुद्दो से ध्यान हट गया।
जिस वैचारिक मुद्दे ले कर, दल, दलो में बट गया ॥
हर दल के घोषणापत्र में, ये मुद्दा आया बारी- बारी।
हर दल ने आवाज उठाई, देश में फैला है बेरोजगारी।
कोई मरा फांसी लगा कर, कोई रेल के नीचे कट गया।
ये कैसी वैचारिक मुद्दे है, क्यों मुद्दो से ध्यान हट गया।
जिस वैचारिक मुद्दे ले कर, दल, दलो में बट गया॥
एक मुद्दा है स्वास्थ्य सुविधा को यहाँ बेहतर करना।
इस मुद्दे को ले कर के कई दलो ने दिये है धरना।
स्वास्थ्य विभाग का फण्ड नेता के खाते में सट गया।
ये कैसी वैचारिक मुद्दे है, क्यों मुद्दो से ध्यान हट गया।
जिस वैचारिक मुद्दे ले कर, दल, दलो में बट गया॥
शिक्षा के नाम पर खाना पूर्ति थोथा ज्ञान ही हैं खाली।
बच्चों के बस्ते में पुस्तक की जगह रहती हैं अब थाली।
मध्याह्न भोजन के नाम पर मुखिया पैसा चट गया।
ये कैसी वैचारिक मुद्दे है, क्यों मुद्दो से ध्यान हट गया।
जिस वैचारिक मुद्दे ले कर दल, दलो में बट गया॥
ये तीनो मुद्दा आज भी जिन्दा है हर चुनावी नारो में।
जिससे पूछों वहाँ दिखेगा ये मुद्दा उनके विचारो में।
पूरखे सुने, अब सुन कर हमारा भी कान पक गया।
ये कैसी वैचारिक मुद्दे है, क्यों मुद्दो से ध्यान हट गया।
जिस वैचारिक मुद्दे ले कर, दल, दलो में बट गया॥
एक सवाल है मेरा, यदि ये तीनो मुद्दा ही है जब एक।
फिर भारत में क्यो बने, कदम -कदम पर दल अनेक।
कैसे "विजय" मिलेगी मुद्दो से जब रास्ता ही फट गया।
ये कैसी वैचारिक मुद्दे है, क्यों मुद्दो से ध्यान हट गया।
जिस वैचारिक मुद्दे ले कर, दल, दलो में बट गया॥
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प्रेरक- कु. अदीक्षा देवांगन
सृजक- विजय सिंह "रवानी"
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