काफ़िर क्या करें


 *ग़ज़ल*

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काफ़िर क्या करें

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मज़हब के खेल मे, काफ़िर क्या करे, 

मर जाए कि मार दे,या फिर क्या करे! 


जिनकी कोई दीदार-ए-मंज़िल न हो,

चल कर मुसलसल मुसाफ़िर क्या करे! 


सहसा कोई पीठ पर घोंप दे खंजर, 

फिर वीरों का वीर महावीर क्या करे!


भटक रहे हैं आज वो दर-बदर  देखो, 

राँझा ही साथ न दे तो हीर क्या करे! 


वक्त की गांधारी ने बांध ली आँखों में पट्टी, 

विष्णुसुदर्शन या अर्जुन का तीर क्या करे!


कुछ किये न धरे सिर्फ़ वक्त बर्बाद किए, 

कोसते हैं क़िस्मत तो तक़दीर क्या करे! 


बेच दी जो इंसानियत, कौड़ी के भाव, 

लेकर बदले में पाप की जागीर क्या करे! 


दरिया-ए-इश्क में जो डूब जाते हैं"अदीक्षा"

कितनी भी हो ,तैराक़ी मे माहिर क्या करे! 


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कुमारी अदीक्षा देवांगन, 

बलरामपुर (छत्तीसगढ़) 

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संकलन/संपादन- विजय सिंह "रवानी"

7587241771 / 9098208751

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