काफ़िर क्या करें
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काफ़िर क्या करें
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मज़हब के खेल मे, काफ़िर क्या करे,
मर जाए कि मार दे,या फिर क्या करे!
जिनकी कोई दीदार-ए-मंज़िल न हो,
चल कर मुसलसल मुसाफ़िर क्या करे!
सहसा कोई पीठ पर घोंप दे खंजर,
फिर वीरों का वीर महावीर क्या करे!
भटक रहे हैं आज वो दर-बदर देखो,
राँझा ही साथ न दे तो हीर क्या करे!
वक्त की गांधारी ने बांध ली आँखों में पट्टी,
विष्णुसुदर्शन या अर्जुन का तीर क्या करे!
कुछ किये न धरे सिर्फ़ वक्त बर्बाद किए,
कोसते हैं क़िस्मत तो तक़दीर क्या करे!
बेच दी जो इंसानियत, कौड़ी के भाव,
लेकर बदले में पाप की जागीर क्या करे!
दरिया-ए-इश्क में जो डूब जाते हैं"अदीक्षा"
कितनी भी हो ,तैराक़ी मे माहिर क्या करे!
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कुमारी अदीक्षा देवांगन,
बलरामपुर (छत्तीसगढ़)
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संकलन/संपादन- विजय सिंह "रवानी"
7587241771 / 9098208751
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