शिक्षा से अदीक्षा भली
*********************
मनुज, मनुज में, भाव का भेद का।
चलनी बताती किस्सा,सूई में छेद का॥
अपनी गलती किसको दिखता।
अॅगुली सदा दूजे पर उठता।
" निंदक नियरे राखिए"
रहीम के दोहे किताब में सजता।
सारे उपदेश अब लगते है फरेब का।
चलनी बताती किस्सा, सूई में छेद का॥
बहू परेशान सास से रहती।
सास बहू की सहती ।
बहुत कष्ट में बेटी मेरी,
हर माँ लोगों से कहती।
दुनिया का दस्तूर यही, यही रिवाज हर एक का।
चलनी बतलाती है किस्सा, सूई में छेद का॥
बुजुर्ग को अतीत प्यारा।
वर्तमान उसको ना गवारा।
अपने यादो की दुनिया में,
खोया रहता हैं बेचारा।
घुटी दे रहा है स्वयं ना माना जिस उपदेश का।
चलनी बताती है किस्सा, सूई में छेद का॥
गुण्डों का सरताज है खादी।
जिनके दम, पर मिली आजादी।
रक्षक बन जाये जब भक्षक,
कौन कहाँ बने फरियादी।
अपाहिज समाज होगा बिना बैशाखी टेक का।
चलनी बताती है किस्सा, सूई में छेद का॥
पक्ष की बदल गई बोली।
विपक्ष तैयार किया टोली।
जनता बेचारा समझ न पायी,
किसकी बन्दुक, किसकी गोली।
सारा खेल वो रच रहे है कुर्सी और जेब का।
चलनी बताती है किस्सा, सूई में छेद का॥
शिक्षा से अदीक्षा भली।
बिन ज्ञान का संग चली।
मेरे अंतरात्मा में,
यू बसी, यू पली।
यह सच्चाई है जहां मे "विजय " राह अनेक का।
चलनी बताती है किस्सा, सूई में छेद का॥
'''"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
प्ररेक- कु. अदीक्षा देवांगन
"""""""""""""""""""""""""""""""""""
सृजक - विजय सिंह "रवानी"
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""

Comments
Post a Comment