वंशवाद


 *वंशवाद*

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वंशवाद की ऐसी नीति चली है। 

हर दल में यह रीति चली है। 

प्रीत लगाये है नेता बेटा से, 

कैसी ये नेता की प्रीति चली है॥


देश की सबसे पुरानी जो दल हैं। 

बेटा, बेटी ही उस दल का बल है।

दशको तक जो राज किये है। 

वंशवाद का वो ही नीव दिये है। 

दिये संस्कृति ये थाती में सबको, 

उनके ही कारण संस्कृति चली है। 

वंशवाद की ऐसी नीति चली है।

हर दल में यह रीति चली है॥


कोई भतीजा वाद को थोपे। 

कोई बीबी को गदी ही सौपे। 

सभी ही दल में है यह बीमारी। 

सभी ही दल की है यह लचारी।

जब से लगाये है प्रीत वो घर में, 

तब से यह विकृति चली है। 

वंशवाद की ऐसी नीति चली है। 

हर दल में यह रीति चली है॥


भोली- भाली है जनता यहाँ पर। 

जाये तो जाये ये जनता कहाँ पर। 

नोटा दबाये या वोट दे उनको।

सोच रही है चुने नेता किनको।

भारत भुमि पर खेल ये कैसा, 

देखो तो प्रकृति चली है। 

वंशवाद की ऐसी नीति चली है। 

हर दल में यह रीति चली है॥


लोकतंत्र का है खेल निराला।

जब मन किया नया दल डाला।

कुछ दिन तक तो खुद ही सवारें। 

बेटा- बहु को धिरे से उतारे।

यही नियम हैं सब दल बल का, 

ऐसी ही आकृति चली है। 

वंशवाद की ऐसी नीति चली है। 

हर दल में यह रीति चली है॥


गर तुम चाहते हो देश बचाना। 

सदैव ऐसी दल को तुम हराना।

तुम्हारे ही हाथों में सता यहाँ है। 

नेताओं का पत्ता यहाँ है। 

"विजय" पराजय का यह शक्ति,

तुम्हारे ही हाथो स्विकृति चली है। 

वंशवाद की ऐसी नीति चली है। 

हर दल में यह रीति चली है॥ 


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*विजय सिंह "रवानी"*

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