काल की कसौटी- कु. अदीक्षा देवांगन "अदी"
*कविता*
(काल की कसौटी)
कु,अदीक्षा देवांगन"अदी"
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कनक, कनक से गुल्लक खनके,
रह, रह कर तब मूरख मन ठनके!
कनक होत स्वर्ण कनक ही धतूरा,
कि काल खड़ा सिर दुश्मन बन के!!
बात बढ़िया कह गये नंद विवेका,
धन जरूरत से ज्यादा तो है कचरा!
बहुजन हिताए जौन काम न आए,
दाग लगाए तब खुद ही का अँचरा!
धन बढ़ाए नित बेइमानी करके!
कि दौलत नहीं इज्ज़त से बढ़ते!!
कनक, कनक,,,,,,,,,,,
अनमोल समय व्यर्थ मत गंवा,
अनमोल स्वच्छ जल शुद्ध हवा!
परिश्रम ही है हर मर्ज़ की दवा,
सब एक-एक हैं तुम बनो सवा!!
समय रेत की तरह मुठी से सरके!
रख नहीं सकते जमा वक्त करके!!
कनक, कनक,,,,,,,,,,,,,
बल बुद्धि अपने वश में कर के,
क्रोध, घृणा,बैर बगल में धर के!
लड़के तब तुम दुनिया से लड़ के,
जाओ बड़ते तुम जाओ बढ़ते!!
बैठे रहो न हाथ में हाथ धर के!
पुण्य करो राष्ट्र की सेवा करके!!
कनक, कनक,,,,,,,,,, ,
कि जीते जी तुम ज़िन्दगी ढूंढ लो,
किसकी करें हम बन्दगी ढूंढ लो!
तन को कितना तुम साफ करोगे,
मन के भीतर तुम गन्दगी ढूंढ लो!!
लगता है अब कुछ होगा बढ़ के!
"अदी" क्यूँ है मेरी आँखें फड़के!!
कनक,कनक,,,,,,,,
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कु,अदीक्षा देवांगन"अदी"
बलरामपुर(छत्तीसगढ़)
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संकलन- विजय सिंह " रवानी"
7587241771, 9098208751
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