कहता है संविधान

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कहता है संविधान

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कहता हैं संविधान हमारा सुन लो देशवासियों।

पूछता  हैं विधान  तुम से बोलो देशवासियों।

तुष्टिकरण की नीति जब सत्ता पर छा जाती है,

संविधान की हालत तब कैसी हो जाती है ।


आजादी के बाद हमको अपना मिला विधान हैं।

भारत की प्राणवायु कहते मुझे संविधान हैं।

कितने घटना देखें हैं हम 72 साल के बेला में।

हर दम हमारा दमन हुआॅ हैं संसद के मेला में।


नेताओं के चुंगल में हम घुट घुट कर के मरते रहे।

अपने मूल भूत रुप से नित दिन हम बदलते रहे।

अब तक 103 संशोधन हो चुके संविधान में ।

एक सौ चौबीस पारित हैं विधेयक इस विधान में ।


मेरे हर एक पन्ने पर अंकित एक आकृति थी।

भारत की गरिमा की कहती वो संस्कृति थी।

हर एक चित्र कहता था भारत का इतिहास यहाॅ।

हमारी हर धरोहर का जताती थी एहसास यहाॅ।


नंद लाल बोस के जतन को किसने कब हटाया है

आने वाले वंशज से किस कारण उसे छुपाया है।

जिसके बिना भारत भी अधूरा भारत लगता है।

भारत की महिमा भी  इन से ही झलकता हैं।


हमने कब दिया हैं ऐसी आजादी बोलो तुम।

हमने कब कहाॅ था गंगा में विष घोलो तुम।

ले कर मेरा नाम तुम करतें रहते हो दंगा यहाॅ।

महजब के मिनार का बना लिए हो धंधा यहाॅ।


विकृत मानसिक रखते हो तुम ऐसा एक रोगी हो।

कैसे कह दूँ मैं तुम को कि तुम यहाॅ निरोगी हो।

अभिव्यक्ति के नाम पर अच्छा खेल खेला है।

तुम्हारे एक भाषण से ही उठा यहाॅ झमेला है।


आओ आज खुशियाॅ मनाओ गणतंत्र आया है।

आज के दिन भारत ने संविधान को अपना है।

जिस देश में तुम रहते हो उस देश का मान रखो।

भारत भूमि हमारी है भारत का सम्मान रखो।


इतनी अर्ज तुम से है सुन लो देशवालो तुम।

संविधान के प्रति अपनी सच्ची अस्था को पालो तुम।

तुम्हारे ही प्रयासों से जन गण की जय होगा।

तुम्हारे ही प्रयासों से भारत का "विजय" होगा।।


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विजय सिंह "रवानी"

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