बिटिया- कु. अदीक्षा देवांगन "अदी"
~ कविता ~
~ बिटिया ~
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परिश्रम नित करती बिटिया,
ठिठुरन भरी जाड़ में!
कभी खीझ कर कह भी देती,
दुनिया जाए भाड़ में!!
गरमी भी सिर पर झेलती है ,
भीगती भी आषाढ़ में!
नंगे पाँव ही चढ़ जाती कभी,
जंगल और पहाड़ में!!
सुरमयी गीत भी गाती है वो,
गाँव की तिज तिहार में!
योग दान उसी का है बढ़कर,
धरती माँ के सिंगार में!!
बेटी पढ़ती और बढ़ती भी है,
नाम करती संसार में!
अकाल गर सिर पर खड़ी हो,
चलती भी है अंगार में!!
सृष्टि का वही रूप भी"अदी"
फूलों की सब कतार में!
जल में थल में नभ में सब में,
सेना की भी हथियार में!!
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कु,अदीक्षा देवांगन"अदी"
बलरामपुर(छत्तीसगढ़)
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संकलन - विजय सिंह "रवानी"
7587241771, 9098208751
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