ज़िंदगी हैं हरि की अमानत- कु.अदीक्षा देवांगन"अदी"
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ज़िंदगी है हरि की अमानत,
चंद दिनों का है जग में बसेरा!
हे मनुज तु हरि नाम जप ले,
इस से पहले कि उठ जाए डेरा!!
क्या ले कर के आया था जग में,
क्या ले कर के है तुमको जाना!
चार दिन की है ये चाँदनी फिर,
इस जग से है तुमको भी जाना!!
बात फिर से ये सुन ले रे बंदे,
फिर क्या तेरा और फिर क्या मेरा!
ज़िंदगी,,,,,,,,
बचपन बिता तेरा खेलने में,
जवानी बित गई जैसे तैसे!
आ गया अब बुढापा तो देखो,
खेल होते हैं और कैसे-कैसे!!
मंज़िल तेरी दूर नहीं अब,
तुने कंठी माला कितना फेरा!
ज़िंदगी,,,,,,,,,
इस जनम की क्या तेरी कमाई,
वहाँ जा कर बताना पड़ेगा!
कितने पाप और कितनी भलाई,
वहाँ पे सब दिखाना पड़ेगा!!
"अदी"सुन लो जरा कान खोल कर,
बारी आज मेरा तो, कल है तेरा!
ज़िन्दगी,,,,,,,,,,,,
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कु, अदीक्षा देवांगन"अदी"
बलरामपुर(छत्तीसगढ़)
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संकलन- विजय सिंह "रवानी"
7587241771, 9098208751

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