बंदिशें !- मनहरण घनाक्षरी छन्द- कु अदीक्षा देवांगन "अदी"-
*बंदिशें!*
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*(कविता)*
(अदीक्षा देवांगन"अदी")
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( मनहरण घनाक्षरी छन्द)
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गर्म लोहे का सूरत,
पुछो तो लुहार से,
ठंडा होने के बाद में,
कैसे डल जाएगा!
पहले था जो पहिया,
रेल गाड़ी का साहब,
छुरी बन कलेजे पे,
वो ही चल जाएगा!!
सोने पर मिलावट,
कर दिए सुहागा में,
मंगल सूत में भी
रेशम सिलाएगा!
हीरे मोती जड़े हुए,
कर के किमत बड़े,
डोर टूटने से माला,
भी बिखर जाएगा!
हीरे को तरासने का,
औजार भी है बनाया,
लोहार के हाथों बना,
शूल काम आएगा!
धरती से जो निकाला,
सोना मज़दूर देखो,
सब तो हड़प लिए,
वो किधर जाएगा!
पैसा ही तो पैमाना है,
आबरु नापने हेतु,
गांधी छाप कागद से,
कद नापा जाएगा !
कैसे करे गा बेचारा,
पैसा नहीं जेब मे तो,
दिल तड़पेगा तब,
दम घूँट जाएगा!
मेहनत किए भी तो,
बना तकदीर नहीं,
देसी रोटी से तो अब,
मजा नहीं आएगा!
कोई अंग्रेजी मदिरा,
पिला कर देखो उसे ,
सिर पर चढ़ेगा तो,
राज खुल जाएगा।
बे-इमानी भ्रष्टाचारी,
ऐसे बंद होगा नहीं,
चुप रहे गा तो तुभी,
रोज छला जाएगा!
नेता हो तो जैसे योगी,
डरें गुंडे-अपराधी,
धन वसूली भी होंगे ,
बंदा जेल जाएगा!
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कु, अदीक्षा देवांगन"अदी"
बलरामपुर-रामानुजगंज
(छत्तीसगढ़)
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