अपने ही शहर में - (ग़ज़ल) कु अदीक्षा देवांगन"अदी"
*अपने ही शहर में!*
(अदीक्षा देवांगन "अदी")
---------------------------------
ग़ज़ल को बहर से, सजा दीजिए!
अपने ही शहर में बसा लीजिए!
ज़िंदगी में कहीं जब मिले न सुकूं,
रोते हुए बच्चे को हँसा लिजीए!
उनके जाल में ग़र फंस न सको ,
उनको जाल मे तब फँसा लिजीए!
दर्दे-दिल की दवा जब मिले न कहीं,
तो हमसे दर्दे-दिल की दवा लिजीए!
ग़म-ए-तन्हाई में दम जो घूँटने लगे,
इश्क के नाम का तब हवा लिजीए!
"अदी"की अदावत से कैसे बचें!
एक दिन के लिए जां गवाँ लिजीए!
-------------------------------------
कु, अदीक्षा देवांगन "अदी"
बलरामपुर (छत्तीसगढ़)
Comments
Post a Comment