अपने ही शहर में - (ग़ज़ल) कु अदीक्षा देवांगन"अदी"


 *अपने ही शहर में!*

(अदीक्षा देवांगन "अदी")

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ग़ज़ल को बहर से, सजा दीजिए! 

अपने  ही  शहर में  बसा लीजिए!


ज़िंदगी में कहीं जब मिले न सुकूं,

रोते हुए बच्चे को हँसा लिजीए!


उनके जाल में ग़र फंस न सको , 

उनको जाल मे तब फँसा लिजीए! 


दर्दे-दिल की दवा जब मिले न कहीं, 

तो हमसे दर्दे-दिल की दवा लिजीए!


ग़म-ए-तन्हाई  में दम जो घूँटने लगे,

इश्क के नाम का तब हवा लिजीए!


"अदी"की अदावत से कैसे बचें! 

एक दिन के लिए जां गवाँ लिजीए! 


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कु, अदीक्षा देवांगन "अदी"

बलरामपुर (छत्तीसगढ़)

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