मनाने चले है- (ग़ज़ल) - कु अदीक्षा देवांगन "अदी"


 *मनाने चले हैं!*

(अदीक्षा देवांगन "अदी"

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रूठी हुई तक़दीर को मनाने चले हैं!

बिखरे हुए सपने वो सजाने चले हैं!! 


मुफ़लिसी की हस्ती तो मिटा न सके, 

बदकिस्मत की लकीर मिटाने चले हैं!!


क्या आने वाले तूफ़ां का अंदाज नहीं,

उजड़ी हुई बस्ती को बसाने चले हैं! 


खुद तो रोते रहे ज़िन्दगी भर देखो, 

वही रोते हुए बच्चे को हँसाने चले हैं!


यथार्थ की सच्चाई से भागते क्यूँ हो,

झूठ के सहारे सच को दबाने चले हैं! 


दिखावे के दाँत से केले तो चबते नहीं,

लिहाज़ा लोहे का चना चबाने चले हैं!


"अदी"खुद की लाज जो बचा न सके, 

दूसरों की  आबरू वो बचाने चले  हैं!!

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कु, अदीक्षा देवांगन "अदी"

बलरामपुर (छत्तीसगढ़) 

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