देखो फँसना नहीं- कु अदीक्षा देवांगन "अदी"

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         *देखो फँसना नहीं!"*

        (अदीक्षा देवांगन" अदी")

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शब्दों के बुने हैं जाल!

                देखो फँसना नहीं!!

भाषण भी है कमाल!

                देखो हँसना नहीं!!


भुजंगा विष निकाल! 

                उन्हें डँसना नहीं!!

करदे वो माला-माल! 

                तानें कसना नहीं!!


जहाँ झंडा हो लाल! 

             वहाँ पे ठँसना नही!!

कब हो जाए बवाल!

            फिर तो बचना नहीं!! 


होरी में रंग-गुलाल! 

               रंगों में रंगना नहीं!!

चुनरिया तो संभाल!

           हाथों में कंगना नहीं!!


बिन तबला त्रिताल!

              मन में बजना नहीं!! 

दिल में करे भूचाल!

            गाँव में सजना नहीं!!


हृदय ज़रा खंधाल!

              गड्ढे मे धंसना नहीं!!

बन जाओ मिशाल! 

            यादों में बसना नहीं!!


पर्वत बनो विशाल! 

             क्या है लड़ना नहीं!!

आगे खड़ा हो काल!

            फिर भी डरना नहीं!! 


कर दो उसे कंगाल!

              भलाई करना नहीं!!

घोटाले का है माल! 

           क्या उसे भरना नही!!


"अदी"लिखती बवाल! 

             कविता पढ़ना नहीं!!

रोटी-सब्जी न दाल!

            झाड़ में चढ़ना नहीं!! 


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   अदीक्षा देवांगन "अदी"

     बलरामपुर (छत्तीसगढ़) 

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*शपथ-पत्र*

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मैं अदीक्षा देवांगन "अदी"

सुपुत्री-श्री आर, डी, देवांगन, 

गाँव-लूर्गी/जिला-बलरामपुर, 

यह घोषणा करती हूँ कि मेरी यह रचना शीर्षक -(देखो फँसना नहीं ) मेरी स्वरचित रचना है। जो कहीं से नकल या चुराई हुई नहीं है। 

तथा सर्वाधिकार सुरक्षित है। 


✒️ अदीक्षा देवांगन "अदी"

प्रकाशन तिथि- 27.03.2021

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