अब नशा ही नहीं - कु अदीक्षा देवांगन "अदी"


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*अब नशा ही नहीं!*

(अदीक्षा' देवांगन "अदी")

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जाम में अब नशा ही नहीं, 

    होश की जब दशा ही नहीं! 


जन्नत में तो भीड़ थी बहुत, 

      भीड़ में वह ठँसा ही नहीं! 


जाल था जो फैलाया हुआ, 

     जाल में वह फँसा ही नहीं!


वर्षों से वह रोता ही रहा, 

       वर्षों से वह हँसा ही नहीं! 


बाँह तो फैले थे जी बहुत, 

     बाहों में वह कसा ही नहीं! 


इश्क भरा इक गाँव"अदी"

       गाँव में वह बसा ही नहीं! 


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अदीक्षा देवांगन "अदी"

बलरामपुर (छत्तीसगढ़) 

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स्वरचित, मौलिक रचना

सर्वाधिकार सुरक्षित

प्रकाशन तिथि- ३१.०३.२०२१

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