खोता बचपन- "अदी" के दोहे- कु अदीक्षा देवांगन "अदी"
( "अदी" के दोहे!)
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(१)
खोता बचपन आप का,
चिंतन की है बात।
कुदरत से दूरी बढ़े,
मौसम करे अघात।।
(२)
जबरन का यह बोझ है,
झोली भरी किताब।
कर दी बचपन छीन के,
जिंदगी बे-हिसाब।।
(३)
बचपन मुझको याद है,
बचपन का वो खेल।
भोला मन से सोचना,
सच्चे दिलों के मेल।।
(४)
बचपन में सोचा नहीं,
जाना है किस ओर।
अरमानों के हाथ में,
जीवन का है डोर।।
(५)
बचपन में जीते रहे,
परिवार एक संग।
जुदा हुए सब जिंदगी,
लगता नहीं उमंग।।
(६)
बचपन खोया है जहाँ,
स्वर्ग जैसा था धाम।
लौट कभी आते नहीं,
गुज़रे सुबहो-शाम।।
(७)
बचपन का वो खेलना,
गये मौज के साल।
जीवन का वो खेल था,
पहरा देता काल।।
(८)
"अदी" बचपन रहा नहीं,
गुजर गया वो काल।
जीवन के इस दौड़ से,
करते बहुत सवाल।।
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अदीक्षा देवांगन "अदी"
बलरामपुर (छत्तीसगढ़)
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*शपथ-पत्र*
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मैं अदीक्षा' देवांगन "अदी"
सुपुत्री-श्री आर, डी, देवांगन,
गाँव-लूर्गी/जिला-बलरामपुर,
यह घोषणा करती हूँ कि मेरी यह रचना (दोहा) शीर्षक -(खोता बचपन) मेरी स्वरचित रचना है। जो कहीं से नकल या चुराई हुई नहीं है।
तथा सर्वाधिकार सुरक्षित है।
अदीक्षा' देवांगन "अदी"
प्रकाशन- तिथि-25.03.2021
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