हमारा ठिकाना कहाँ कौन जाने -ग़ज़ल- कु अदीक्षा देवांगन "अदी"
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*मुत़का़रिब बहर!*
फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,
फ़ऊलुन, फ़ऊलुन,
१२२ १२२ १२२ १२२
नोट-मात्रिक छंद में गिनती करें तो प्रत्येक पँक्ति २०-मात्रा व प्रत्येक शेर में-४०-मात्राएँ
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*ग़ज़ल!-*
*अदीक्षा देवांगन"अदी"*
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हमारा ठिकाना कहाँ कौन जाने,
दिलों को सताना यहाँ कौन माने!
हमें है यक़ीं बात बन कर रहे गी,
बदलता जमाना चला आज़माने!
कहो रात भर बात होती रहे गी,
तुझे तो ज़िगर से हमें हैं लगाने!
शरम बेंचने में शराफत कहाँ है,
लजाते नहीं जो चले अब लजाने!
तराने नहीं मौशिक़ी भी नहीं तो,
बताना जरा कौन से गीत गाने!
घरौंदा बनें रेत से आसमां पर,
वही जानता है घरौंदा बनाने!
हमारे वतन से उलझते रहे जो,
तमाचा पड़ा तो लगे गिड़गिड़ाने!
"अदी"मान लो राज़ खुल के रहेंगे,
पिलायें ज़हर जब, दवा के बहाने!
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अदीक्षा देवांगन" अदी"
बलरामपुर (छत्तीसगढ़)
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स्वरचित मौलिक ग़ज़ल
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रकाशन तिथि 19.04.2021

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