अवध में राम हो जाए- ग़ज़ल - कु अदीक्षा देवांगन"अदी"


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     विधा- *ग़ज़ल!*

    बहर-  *हज़ज!*

रचयिता- 

*अदीक्षा देवांगन "अदी"*

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मापनी-

मुफ़ाईलुन, मुफ़ाईलुन, मुफ़ाईलुन, मुफ़ाईलुन,

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

मात्रिक छंद मात्रा-56, 

प्रत्येक पँक्ति 28 मात्रा। 

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*ग़ज़ल*

क़ाफ़िया-आअ, 

रदीफ़-हो जाए, 

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   1222 1222 1222 1222


यही हसरत, जमाने में,

           वतन का नाम हो जाए।

बहारों  से  सजे  भारत,

          अवध  में राम हो जाए!!


हमें जाना नहीं जन्नत, 

             हमारी जान है कुदरत। 

वतन की कर्म सेवा में, 

           सुबह से शाम हो जाए॥


करो मत काम ऐसा जो, 

           क़यामत सी लगे सबको।

इजाज़त हो नहीं सकती,

           लबों पर ज़ाम  हो जाए॥


बहारों की नहीं महफ़िल, 

           नहीं गुलशन कली महके।

क़ज़ा की शान मे दिलबर, 

           शहीद-ए-नाम  हो  जाए॥


निगाहों  में  पनाहों  में, 

           हमेशा ख़ाब में हमदम। 

इनायत आँख से करलो, 

           गुले-गुलफ़ाम हो जाए॥


कहीं जाना नहीं हमको, 

           यहीं  जन्नत  बनाना  है। 

जमाने  को  बदलना है, 

           जहाँ हरिधाम हो जाए॥


"अदी" कैसा किनारा है, 

            जहाँ किश्ती नहीं रुकती। 

गरीबों  का  सहारा  हो,

             नहीं  बदनाम हो जाए॥


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     अदीक्षा देवांगन "अदी"

   बलरामपुर (छत्तीसगढ़)


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स्वरचित मौलिक ग़ज़ल

सर्वाधिकार सुरक्षित

प्रकाशन तिथि-२०.०४.२०२१

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