राब्ता अब नहीं कह दिए- ग़ज़ल- कु अदीक्षा देवांगन "अदी"
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*ग़ज़ल*
क़ाफ़िया- *अइए*
रचनाकारा-
*अदीक्षा देवांगन"अदी"*
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*212 212 212*
राब्ता अब नहीं कह दिए,
रास्ता जब मिला चल दिए!
रात भर अब ,नहीं जागना,
बात जो कह दिए सुन लिए!
ज़िदगी का ठिकाना नहीं,
ख़ाब में जी लिए मर लिए!
भीड़ में खो गया हमसफ़र ,
अब नहीं जो हमें दुख दिए!
वह शहर भी नहीं अब रहा,
जिस शहर में बसर हम किए!
बोल कर जो मुकर भी गए,
माफ़ भी हम उसे कर दिए!
ऐ "अदी" सब सलामत रहे,
हम चले तुम चले चल दिए!
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अदीक्षा देवांगन "अदी"
बलरामपुर (छत्तीसगढ़)
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स्वरचित मौलिक ग़ज़ल
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रकाशन तिथि -२३.०४.२०२१

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