आश़िकी आबरू या हया है- ग़ज़ल- कु अदीक्षा देवांगन "अदी"
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ग़ज़ल
अदीक्षा देवांगन"अदी"
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212 212 2122
आशिक़ी आबरू या हया है!
सब वही है,कहाँ कुछ नया है!
जिंदगी इक नशा है जवानी,
ज़िंदगी धड़कनों की दया है!
ज़िदगी जान तन-मन नहीं है,
आग जल-थल जमीं नभ हवा है!
बाग़बां फूल से आज बोला,
बाग में भीड़ है कारवाँ है!
देख लो आजमा के उसे भी,
जाल में फाँसता दिलजला है!
रास्ता कौन सा है "अदी"का,
जान लो कौन हँसते गया है!
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अदीक्षा देवांगन "अदी"
बलरामपुर (छत्तीसगढ़)
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स्वरचित मौलिक ग़ज़ल
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रकाशन तिथि २५.०४.२०२१
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