चाँदनी की रौशनी में, रात हमने जो गुजारे - ग़ज़ल -विजय सिंह "रवानी"
*ग़ज़ल*
*क़ाफ़िया-आ*
*रदीफ-रे*
*मात्रा (वज़्न)-२८-२८*
*बहर का नाम-रमल*
*चार फ़ाइलातुन*
2122 2122 2122 2122
🛶🛶🛶🛶🛶🛶🛶🛶🛶
2122 2122 2122 2122
चाँदनी की रौशनी मे, रात हमने जो गुज़ारे!
गाँव की सूनी गली में, थे सुहाने से नज़ारे!!
आ गया मैं शहर में तो, जान पाया लोग क्या है,
शहर की ये तंग गलियाँ, मतलबी हैं लोग सारे!!
मोल है शोहरत भी है, है यहाँ सपने हज़ारों,
गर नहीं है कुछ यहाँ तो, लोग ही अपने हमारे!!
है शहर ये नाम का जो, नाम का ही है बसेरा,
कौन किसको जानता है, कौन किसको कब पुकारे!
ना किसी को चैन है जो, हाल पूछें वो किसी का,
कौन दे किसको सहारा, लोग सारे बेसहारे!!
आ "विजय" अब लौट जाएं, मन नहीं लगता यहाँ पर,
याद आता गाँव मेरा, जो बसा है वट किनारे!!
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
*विजय सिंह "रवानी"*
*चिरिमिरी (छग)*
Comments
Post a Comment