इब्तिदा - ए- ज़िंदगी- ग़ज़ल - कु अदीक्षा देवांगन "अदी"
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नज़्मे-ग़ज़ल
ग़ज़लकारा-
अदीक्षा देवांगन "अदी"
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2122 212 2122 212
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इब्तिदा-ए-ज़िंदग़ी,
साथ हरदम है क़ज़ा!
ज़िंदगी की राह में,
आह!हर ग़म है सज़ा!!
जान जाती है किधर,
यह कहानी जान लो,
जान लो किमती बड़ी!
मौत मरहम है दवा!
शबनमी है ज़िदग़ी,
बात मेरी मान लो,
जान है कितनी बड़ी,
बात शबनम ये बता!
कौन जाने किस कदर,
जान जाए गी यहाँ,
जां वतन पे हो फ़ना,
साँस-धड़कन की दुआ!
बात कहती है जमीं,
बात कहता आसमां,
सागरों से पूछ लो,
चल मुसलसल ऐ हवा!
सरहदों की बात है,
रात को सोना नहीं,
जागना है रात भर,
नींद सरहद में कहाँ!
रात काली है "अदी"
मान लो कटती नहीं,
जीत जाएँगे लड़ो,
रात हमदम हमनवा!
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अदीक्षा देवांगन "अदी"
बलरामपुर (36गढ़)
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स्वरचित मौलिक ग़ज़ल
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रकाशन तिथि-३०.०४.२०२१
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