तिज़ारत का जमाना है- ग़ज़ल- कु अदीक्षा देवांगन "अदी"
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विधा- *ग़ज़ल!* /बहर- *हज़ज!*
रचयिता - अदीक्षा देवांगन"अदी"
मापनी-मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन।
मात्रा-56/प्रत्येक पँक्ति -28 मात्रा।
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*ग़ज़ल!*
क़ाफ़िया -अआअअ/रदीफ़-का जमाना है।
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1222 1222 1222 1222
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निगाहों से करें सौदा,
तिज़ारत का ज़माना है!
गरीबों की नहीं दुनियाँ,
सियासत का ज़माना है!!
कहाँ वो दिन गए जानें,
वफ़ा की बात होती थी!
अभी देखो जिधर देखो,
अदावत का जमाना है!!
हमारे देश की जनता,
कभी जब जाग जाएगी!
यही जनता पुकारे गी,
बगावत का जमाना है!!
दिलों को जोड़ कर देखो,
सुकून-ए-साँस आएगी!
लड़ाने की सियासत में,
क़यामत का ज़माना है!!
गुलामी तोड़ दो मन की,
दिखा दो काल को ताकत!
जमाना भी बदलता है,
हिमाक़त का ज़माना है!!
हमें मालूम है कैसे,
सुबह से शाम होती है!
किसानों के लिए तो ये,
थकावट का ज़माना है!!
"अदी"से बात ये कह दो,
कलम को धार करले वो!
जमाने को बदलना है,
लिखावट का जमाना है!!
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अदीक्षा देवांगन"अदी"
बलरामपुर (छत्तीसगढ़)
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स्वरचित मौलिक ग़ज़ल
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रकाशन तिथि- २०.०४.२०२१

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