शाम ढलती है, आग जलती है- ग़ज़ल- कु अदीक्षा देवांगन "अदी"
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*ग़ज़ल!*
अदीक्षा देवांगन "अदी"
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शाम ढलती है,आग जलती है!
लोग मिलते हैं, बात चलती है!!
मौन कहता है,चीख गुँजती है!
चाँद हँसता है,रात छलती है!!
प्यार करते हैं, आह! भरते हैं!
साँस चलती है, मौत टलती है!!
रोज मरते हैं, रोज जीते हैं!
फूल खिलता है,डाल हिलती है!!
होश रहता है, जान सहमी है!
काल रोता है, आँख छलकी है!!
गाँव बसता है, शहर बसते हैं!
भीड़ बढ़ती हैं, दाल गलती है!!
साथ "अदी" का, छोड़ चलते हैं!
प्यार पल का था,बात हलकी है!!
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अदीक्षा देवांगन "अदी"
बलरामपुर (छत्तीसगढ़)
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स्वरचित मौलिक ग़ज़ल
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रकाशन तिथि - २२.०४.२०२१

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