गज़ब की शाम होती थी-ग़ज़ल- कु अदीक्षा देवांगन "अदी"


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                      *ग़ज़ल!*

           बहर-   *हज़ज!*

मापनी-मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन, 

1222 1222 1222 1222

मात्रा-56/प्रत्येक पँक्ति -28 मात्रा। 

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         *ग़ज़ल-अदीक्षा'देवांगन"अदी"*

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गज़ब की शाम होती थी, 

               चराग़े-ग़म जलाते थे! 

अदब से बात होती थी, 

             नज़र भी हम चुराते थे!! 


ग़ज़ल बे-राग छिड़ते सुर, 

               तराने मौशिक़ी नग़मे!

हमारी जान जाती थी, 

              तभी दिल गुनगुनाते थे!! 


नजारा देख कर धड़कन, 

             दिलों में धड़-धड़ाती थी! 

सहारा आसमानों का, 

              जहाँ सपने सजाते थे!! 


हमारे साज़ के सरगम, 

              हमेशा तार सप्तक में!

जहाँ पे ढोल बजना था, 

              वहाँ तबला बजाते थे!! 


मज़ाकें भी वहाँ साहब, 

                उड़ाते लोग थे ज़ा़लिम!

निगाहें ताड़कर हरदम,

                 हमें वो आजमाते थे!!


हमें अब आजमाने की, 

                 कभी ज़ुर्रत नहीं करना!

"अदी"है आग का दरिया,

                जहाँ हम नाव चलाते हैं!! 


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स्वरचित ग़ज़ल।सर्वाधिकार सुरक्षित। 

          अदीक्षा देवांगन "अदी"

         बलरामपुर (छत्तीसगढ़) 

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प्रकाशन तिथि २१.०४.२०२१

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