डायरी की हूँ ग़ज़ल - ग़ज़ल - कु अदीक्षा देवांगन "अदी"
🦅🦅🦅🦅🦅🦅🦅🦅
ग़ज़ल
अदीक्षा देवांगन "अदी"
*********************
2122 2122 2122 212
डायरी की हूँ ग़ज़ल मुझको,
जुबां भी चाहिए,
महफ़िलों में छा सकूँ ऐसी,
दुआ भी चाहिए!
कौन जाने कब मिले उनसे,
नज़र भी इश्क में,
मान लो मेरी अभी चाहत,
नशा भी चाहिए!
रात में जुगनूँ नहीं हैं,
आज कोई बाग में
जल रहा है दीप रौशन,
तो हवा भी चाहिए!
सागरों में जाम हों तो,
जाम वो किस काम के,
जाम देने के लिए इक,
साक़िया भी चाहिए!
इश्क करना है अगर तो,
इश्क कर लो मुल्क से,
ऐ सनम प्यारे वतन को,
रहनुमा भी चाहिए!
चाहतें हैं यह ग़ज़ब की,
चाँद, तारें तोड़ लूँ ,
हो जमीं भी साथ मेरे,
आसमां भी चाहिए!
आदमी हो आदमी का,
मीत बनके सब यहाँ,
आदमी को आदमी से,
आसरा भी चाहिए!
फैसला ये है "अदी" का,
बात उसकी मान लो,
ख़ूं बहाने के लिए दिल,
हौसला भी चाहिए!
🦇🦇🦇🦇🦇🦇🦇🦇🦇
अदीक्षा देवांगन "अदी"
बलरामपुर(36गढ़)
🦅🦅🦅🦅🦅🦅🦅🦅🦅
स्वरचित मौलिक ग़ज़ल
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रकाशन तिथि-१३.०५.२०२१
Comments
Post a Comment