बदलाव- कविता- कु अदीक्षा देवांगन "अदी
*कविता*
*शीर्षक- बदलाव!*
*कवयित्री-
अदीक्षा देवांगन "अदी"*
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पगडंडी की छाती पर देखो,
चढ़ बैठी जो पक्की सड़क!
चरखा-करघा भी बंद हुए सब,
लिए पत्थर की चक्की हड़प!
ढेंकी-मुसल, नागर, व कोल्हू,
ओखली, हँसिया भी गायब,
आधुनिकतम यंत्रों के आगे,
प्राचीनतम है रहा तड़प!!
पगडंडी,,,,,,,
दौलत वाले बढ़ चले सब,
दरिद्र दल-दल में धंसे रहे!
कागद रूपी धन फाँस में,
मजदूर,खेतीहर,फँसे रहे!!
रोड़े इनके विकाशमार्ग के,
धनपशु,नेता, अफसर, गुंडे,
देखो भ्रष्टाचार के कांटे,
गली-गली में रहे पनप!!
पगडंडी,,,,,,
दबदबा हो पैसों की तब,
क्या करें मेहनत वाले!
हारता है जीवन भी तब,
हौसला व हिम्मत वाले!!
चोरी-चकारी,छीना-झपटी,
आतंकवादी अंधा-कपटी,
आगजनी हिंसा की कहर,
देखो जिधर झगड़े-झड़प!
पगडंडी,,,,,,,
"अदी" पिसती जनता देखो,
दो पाटन के बीच फँसी है!
भीतर-भीतर रो रही है,
बाहर दिखावे की हँसी है!!
दलों के दलदल लोकतंत्र में,
माहिर हैं सब षड़यंत्र में!
रोज केकटस के फूलों जैसे,
निकल रहे हैं तड़क-भड़क!
पगडंडी,,,,,
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*अदीक्षा देवांगन "अदी"*
*बलरामपुर (36गढ़)*
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स्वरचित मौलिक कविता
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रकाशन तिथि -०८.०५.२०२१

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