दीवार में बसेरा दरारों का हो गया- ग़ज़ल- कु अदीक्षा देवांगन "अदी"
गज़़ल
अदीक्षा देवांगन"अदी"
२२१२ १२२ १२२,२२१२
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दीवार में बसेरा दरारों का हो गया,
जलसे भरासमंदर,किनारों का हो गया!
आकाश बादलों से धिरा है बरसात में,
टुटता हुआ सितारा,सितारों का हो गया!
देखो कभी उधर भी जहाँ बरखा जल नहीं
जलमें खिला कमल भी अँगारों का हो गया!
सुनता नहीं जमाना कभी उनकी दास्तां,
जो मौसम ख़िजा था बहारों का हो गया!
था आशियाँ उसी का मिला उसको ही नहीं,
वो आशियाँ लिहाज़ा नज़ारों का हो गया!
जो ज़िंदग़ी मिली तो बिताओ जी प्यार से,
दिल मौशिक़ी दिलों में सहारों का हो गया,
नज़रें मिली नहीं तो , जमाने में यार से,
था प्यार आशिक़ी जो,नकारों का हो गया!
जाएँ "अदी" जहाँ भी,वहाँ भी हो ज़िंदग़ी,
वो प्यार का बसेरा, बिचारों का हो गया!
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अदीक्षा देवांगन"अदी"
बलरामपुर (छत्तीसगढ़)
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स्वरचित मौलिक ग़ज़ल
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रकाशन तिथि -२५.०६.२०२१
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