नहीं कोई खजाना जेब- ग़ज़ल - कु अदीक्षा देवांगन "अदी"
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ग़ज़ल
अदीक्षा देवांगन"अदी"
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१२२२ १२२२ १२२२,१२२२,
नहीं कोई खज़ाना जेब
है खाली किधर जाएँ!
जिधर जाएँ नसीबों का
कहर बरपे बिखर जाएँ!
यहाँ वो रोज आते हैं,
तसव्वुर में न जानें क्यों,
दिखाई कुछ नहीं पड़ते
नज़र में ही नज़र जाएँ!
वफ़ा भी कौन करता है
मुसलसल इस जमानें में,
यहाँ पर इश्क ऐसा जो
नशा चढ़कर उतर जाए!
दुकानों में नहीं मिलते
कहीं भी दिल क़िफ़ायत में,
जहाँ पे दिल धड़क जाए
मुसाफ़िर भी ठहर जाएँ!
सुधरता कौन है हमदम
बताओ बात दिल की तुम,
लिहाज़ा वो सुधर जाएँ
वहीं हम भी सुधर जाएँ!
जगा के आसरा चल दो
यही दस्तूर है ज़ालिम,
सभी तुम बात भुल जाओ
कि वादा से मुकर जाएँ!
ठिकाना है बहारों का,
नज़ारों का सितारों का,
जमाना तो गुज़रता है
चलो हम भी गुज़र जाएँ!
"अदी"कह दो जमाने से
खुदा का नाम ले कर तुम,
लिहाज़ा तुम निखर जाओ
नज़ारे भी निखर जाएँ!
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अदीक्षा देवांगन "अदी"
बलरामपुर(छत्तीसगढ़)
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स्वरचित मौलिक ग़ज़ल
प्रकाशन तिथि १९.०६.२०२१
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