मोतियाँ मुंतशिर हो गए इस कदर- ग़ज़ल -कु अदीक्षा देवांगन "अदी"

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 ग़ज़ल

(अदीक्षा देवांगन"अदी)

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 २१२ २१२ २१२ २१२


मोतियाँ मुंतशिर हो गए इस कदर,

तोड़ के डोर सब हो गए दर-बदर!


एक माला बनी थी दिलों से जुड़ी,

प्रेम का वो दिया रौशनी की नज़र!


हमें  है  यकीं  वक़्त की चाल पर,

करवटें ली बदल हो रहा है असर!


नींद में ख़्वाब था ख़्वाब में ज़िंदग़ी,

जो खुली आँख तो सब गए थे बिखर!


बेवफ़ाई, अदावत, बगावत, सही,

हम इधर हो लिए हो गए वो उधर!


याद है आज तक खेलते बचपनें,

गाँव थे प्यार के हो गए अब शहर!


था नशा प्यार  का  और संसार का,

खो गए वो निशां,चल दिए रहगुज़र!


 ऐ"अदी"प्रेम की उम्र सदियों- सदी,

 प्रेम होता अमर  है,अमर ही अमर!


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 अदीक्षा देवांगन"अदी"

 बलरामपुर(छत्तीसगढ़)

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स्वरचित मौलिक ग़ज़ल

सर्वाधिकार सुरक्षित

प्रकाशन तिथि २२.०६.२०२१

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