आषाढ़ की बरसात है तालाब में खिलता कमल- ग़ज़ल- कु अदीक्षा देवांगन "अदी"


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आषाढ़ की बरसात!
ग़जल-अदीक्षा देवांगन"अदी"
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२२१२ २२१२ २२१२ २२१२
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आषाढ़ की बरसात है तालाब में खिलता कमल,
ये  बादलों  के  कारवां जो चाँद को  देते  बदल!

चलती  हवा  संगीतमय कुदरत यही  है  जान लो,
सावन घटा-घनघोर जो ये मौशिक़ी की है ग़ज़ल!

दीवानगी  की  हद  बढ़ी सूरज छुपा लो आसमां,
है रौशनी जो प्यार की है ज़िंदग़ी उसकी सफल!

सागर  भरे  नदियाँ  भरी  पानी नहीं  है आँख में,
कहता यही हर आदमी फुर्सत नहीं है आज-कल!

बरसात  से  घर-बार  की  कुदरत बचाए ज़िंदगी,
ढह जो रहे हैं आशियाँ  होती  रही आँखें सजल!

दिलकी ज़ुबां ये कहरही हो आखरी जुल्मों-सितम,
बोलो"अदी"किस बात पे जनता करे हँसके अमल!

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अदीक्षा देवांगन"अदी"
बलरामपुर (छत्तीसगढ़)
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स्वरचित मौलिक ग़ज़ल
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रकाशन तिथि -२८.०६.२०२१

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