घनघोर सावन की घटा - ग़ज़ल - कु अदीक्षा देवांगन "अदी"
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नज़्मे-ग़ज़ल
अदीक्षा देवांगन"अदी"
*२२१२,२२१२,२२१२,२२१२*
घनघोर सावन की घटा,
अल्हड़ पवन झुमता गगन,
बरसात का मौसम जवां,
हरियालियाँ उपवन सघन!
आषाढ़ बुंदो की झड़ी,
हँसती हुई खिलती कली,
मौसम हुआ है बावरा,
प्रकृति हसीं खिलता चमन!
भादों महीना प्यार का,
मिलते रहो सब प्यार से,
बेला मिलन का आ गया,
सजनी चली मिलने सजन!
जीवन मिला है आदमी,
तो कर्म हो इन्सान का,
धोखा कभी करना नहीं,
हरदम रहे बढ़िया चलन!
सोचो सही ये बात है,
कुदरत बदलता रूप है,
तुम भी कहो ये ठान के,
जाँ से बड़ा अपना वतन!
हो झील सी आँखें सनम,
सागर कहीं हो प्यार का,
शबनम सुहानी शाम की,
शरबत भरे कज़रे नयन!
होता नहीं सौदा "अदी"
देखो कहीं भी प्यार का,
मरता नहीं है प्यार तो
किसके लिए है ये क़फ़न!
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अदीक्षा देवांगन"अदी"
बलरामपुर(छत्तीसगढ)
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