दिल बन गया दैरो-हरम- ग़ज़ल- कु अदीक्षा देवांगन "अदी"

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ग़ज़ल

अदीक्षा देवांगन"अदी"

        २२१२,२२१२,२२१२,२२१२

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दिल बन गया दैरो-हरम,ईश्वर-ख़ुदा रहते यहाँ,

दीवार नफ़रत की खड़ी, दीवार भी ढहते यहाँ!


घर  दूर  है  इंसान  से  परिवार  भी सब दूर हैं,

क्या लोग हैं जो लोग से होकर ज़ुदा रहते यहाँ!


है रंज़िशे-सरहद कहीं बहता हुआ क्यों खून है,

जो  दूसरों  को 'मारते  वे  लोग  भी मरते यहाँ!


ज़म्हूरियत में आदमी  ही  आदमी से  क्यों  बड़ा,

लाचार हैं क्यूँ लोग जो ज़ुल्मों-सितम सहते यहाँ!


नासेह भी गुमराह सब ढोंगी पुजारी हैं  बहुत,

आवाम को लूटा करें भगवान को जपते यहाँ!


देखो  ग़रीबों  की  दशा दुर्गम गली के आशियाँ,

हो रात काली ही सही दीपक नहीं जलते यहाँ!


देखो"अदी" ये  जान लो जो इश्क है संसार में,

उगता हुआ सूरज जिधर तारे उधर ढलते रहे!


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शब्दार्थः-

दैरो-हरम=पूजा घर,मंदिर,मस्ज़िद ,

रंज़िशे-सरहद=सीमा का विवाद,झगड़ा,

जम्हूरियत=लोकतंत्र,डेमोक्रेसी,

नासेह=घर्मोपदेशक, धार्मिक उपदेश देने वाला,

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अदीक्षा देवांगन"अदी"

बलरामपुर(छत्तीसगढ़)

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स्वरचित मौलिक ग़ज़ल

सर्वाधिकार सुरक्षित

प्रकाशन तिथि - ०३.०७.२०२१

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