काँटो से डरते हैं न खूनी खंजर के शूल से - ग़ज़ल - कु अदीक्षा देवांगन "अदी"
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(अदीक्षा देवांगन "अदी")
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२२२२,२२१२,२२२२,२२१२
काँटों से डरते हैं न हम ख़ूनी खंज़र के शूल से,
हम डरते हैं तो सिर्फ़ अपने ही बागों के फूल से!
सबको रहना है साथ में,प्यारा-प्यारा अपना वतन,
सुख जाती हैं वे डालियाँ,जो बिछड़े अपने मूल से!
आया है सावन झूम के,खुशियाँ लाई ठंडी हवा,
सावन में झूले हैं गड़े , झुलना झूले की झूल से!
दीवानों से ये मत पुछो कैसा तुम्हारा हाल है,
दिलवालों पे भी हो इनायत ये कहदो रस्ऊल से!
दौड़े जाते हैं लोग जो अंजानें में ही जिस दिशा,
साया करता हो प्रश्न तो फिर उत्तर दो माकूल से!
दीवानें हैं पागल नहीं देखो उनको भी प्यार से,
दीवानों से कह दो"अदी"तौबा करलें सब भूल से!
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*अदीक्षा देवांगन"अदी"*
*बलरामुर (छत्तीसगढ)*
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स्वरचित मौलिक ग़ज़ल
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रकाशन तिथि- ०६.०७.२०२१
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