पल पल जनमतीं आशाएँँ- कविता- कु अदीक्षा देवांगन "अदी"

 

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विधा-कविता,

शीर्षक- चीखती दीवारें,

रचना- अदीक्षा देवांगन "अदी"

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पल-पल जनमतीं आशाएँ,

        क्षण-क्षण जागता विश्वास!

होटों  में  छटपटाती तृष्णा,

        आँखों  में  तरसती  प्यास!!


लिहाजा क़िस्मत की लकीर,

        जैसे-रेत पर लिखी तकदीर!

समन्दर में तैरते हुए पत्थर,

        अंधियारे में उभरती तस्वीर!


हृदय  को  कचोटती  पीड़ा,

        फिर  भी  मन में है कयास!

पल-पल जनमती आशाएँ,

        क्षण-क्षण जागता विश्वास!!


देखो यह ग़ज़ब की  माया,

         सिर पे दरिद्रदेव का साया!

आँगन  में  बिलखते बच्चे,

          पेट में भूख उघड़ा काया!!


दिन-रात सिसकती ममता,

          जर्र-जर्र तन चेहरा उदास!

पल-पल जनमती आशाएँ,

         क्षण-क्षण जागता विश्वास!!


काल की कसौटी पे कसता,

         पानी मँहगा व लहु है सस्ता!

आबरू बिके थोक भाव में,

        जाएँ किधर गली ना रस्ता!!


देखो  कुदरत  की नियति,

          रोती  जमीं रोता आकाश!

पल-पल जनमती अाशाएँ,

         क्षण-क्षण जागता विश्वास!!


 ढहते  घर  चीखती दीवारें,

         दूर से कहीं झाँकती मीनारें!

खामोश क्यों रहतीं हैं देखो,

        जनता द्वारा  चुनी  सरकारें!!


बस इतना ही कहना "अदी"

         कोई दूर-दूर कोई पास-पास!

पल-पल  जनमती  आशाएँ,

        क्षण-क्षण  जागता विश्वास!!


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अदीक्षा देवांगन"अदी"

बलरामपुर(छत्तीसगढ़)

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स्वरचित मौलिक रचना

सर्वाधिकार सुरक्षित

प्रकाशन तिथि - ०८.०७.२०२१

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