हमें ढूंढने में ज़माने लगें गे -ग़ज़ल- -कु अदीक्षा देवांगन "अदी"
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विधा-ग़ज़ल
क़ाफिया-आने, रदीफ़- लगेंगे,
रचनाः-अदीक्षा देवांगन"अदी"
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*122 122 122 122*
हमें ढूंढने में जमाने लगेंगे,
हमारा ठिकाना,ठिकाने लगेंगे!
हमारी कहानी पुछो तो हवा से,
क़ज़ा की नज़र में समाने लगेंगे!
हुनर सिख रहे हैं यही ज़िदगी में,
कि रोते हुए को हँसाने लगेंगे!
हमें आशिकी़ में खुदा चाह ले तो,
हमें यार दिल में बसाने लगेंगे!
सभी ख़ाब बिखरे हुए हैं अभी तो,
वही ख़्वाब फिर से सजाने लगेंगे!
सभी यार अपने पराया नहीं है,
जवां दिल सभी का चुराने लगेंगे!
नज़र जो मिली थी कहीं खो गए थे,
नज़र से नज़र अब मिलाने लगेंगे!
वफ़ा सब करेंगे हुए बेवफ़ा तो,
सभी तब बहाने बनाने लगेंगे!
कहो यार दिल से मुहोब्बत हुई है,
हमारी ग़ज़ल सब सुनाने लगेंगे!
दिलों की ज़ुबां से दिलों की कहानी,
सुनो यार दिल आज़माने लगेंगे!
झुकेगा जमाना डरो मत किसी से,
डरे ग़र अभी सब डराने लगेंगे!
ग़ज़ल हो पुरानी जवां मौशिक़ी हो,
वही शेर दिल को लुभाने लगेंगे!
बिना काम के हैं हवा के चराग़ें,
वही आग दिल की बुझाने लगेंगे!
"अदी"की अदाएँ,कहाँ तक चलेगी,
उसे छोड़ कर यार जाने लगेंगे!
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अदीक्षा देवांगन "अदी"
बलरामपुर(छत्तीसगढ)
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स्वरचित मौलिक ग़ज़ल
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रकाशन तिथि -०६.०७.२०२१
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