वक़्त के साथ चल ये मेरे हमसफ़र- ग़ज़ल -कु अदीक्षा देवांगन "अदी"
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ग़ज़ल
रचना-अदीक्षा देवांगन"अदी"
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*२१२ २१२ २१२ २१२*
वक़्त के साथ चल ये मेरे हमसफर,
तुम ठहरना नहीं ख़त्म होगा डगर!
जा रहे हैं किधर जानते भी नहीं,
रास्ते बे-निशां मंज़िलें बे- ख़बर!
राब्ता है खुदा से हमें क्या पता,
जा रहे हैं जहाँ है उसी का असर!
ऐ क़ज़ा साथ चल रास्ता तो बता,
हम चलेंगे सही तुम चलोगे जिधर!
आसमां में कहीं खो गया चाँद भी,
और तारे सभी हो गए बे-अधर!
इश्क़ होता नहीं दिल मिले ही नहीं,
और मिलते नहीं हैं नज़र से नज़र!
रास लीला नहीं प्रेम की दास्तां,
छीर सागर महे तो मिला है ज़हर!
प्यार की दास्तां तो सुनाते चलो,
गीत हो शेर हो या कहो तुम ग़जल!
जो"अदी"की अदावत मनाने चले तो,
मान जाए मगर वक़्त ढाए कहर!
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अदीक्षा देवांगन"अदी"
बलरामपुर(छत्तीसगढ)
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स्वरचित मौलिक ग़ज़ल
सर्वाधिकार सुरक्षित,
प्रकाशन तिथि -06.07.2021
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