ए ग़मे-ज़िंदगी मुंतशिर हर खुशी - ग़ज़ल - कु अदीक्षा देवांगन "अदी"


 ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

विधा-ग़ज़ल

रचना:-अदीक्षा देवांगन "अदी"

➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

२१२ २१२ २१२ २१२

☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️


ऐ ग़मे-ज़िंदगी मुंतशिर हर खुशी,

ग़ैर-ए-मुस्तकिल चेहरे की हँसी!


बेखुदी में कदम उठ गए बे खबर,

लौट आए मगर हर कदम बेबसी!


आज  पंछी उड़े पींज़ड़ा तोड़ के,

और परवाज़-ए-आसमां लाज़मी!


आदमी था कभी,बन गया देवता,

और इंसान फिर भी बना ही नहीं!


नींद में ख़्वाब था ख्वाब में ज़िंदगी,

ख़ाब ने ख़ाब में कर लिए खुदकुशी!


लोग  आते  रहे  लोग  जाते रहे,

भीड़ में ऐ"अदी"खो गई रौशनी!


➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

अदीक्षा देवांगन "अदी"

बलरामपुर (छत्तीसगढ़)

➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

शब्दार्थ-

ग़मे-ज़िंदगी=ज़िदगी के ग़म।मुंतशिर=बिखरा हुआ।

ग़ैर-ए-मुस्तकिल= क्षणिक,थोड़ी देर के लिए।

परवाज़-ए-आसमां= आकाश की उड़ान।

➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖


स्वरचित मौलिक ग़ज़ल

सर्वाधिकार सुरक्षित

प्रकाशन तिथि -०७.०७.२०२

Comments